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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवत्दर्शन की उत्कंठा

भगवत्दर्शन की उत्कंठा

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1079
आईएसबीएन :00000

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भगवत्दर्शन की उत्कंठा ...

Bhagvad Darshan Ki Utkantha -A Hindi Book by Jaydayal Goyandaka a hindi book by Jaidayal Goyandaka - भगवत्दर्शन की उत्कंठा - जयदयाल गोयन्दका

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

चुने हुए अमूल्य रत्न

‘‘ऐसी चेष्ठा करनी चाहिये, जिससे एकान्त स्थान में अकेले का ही मन प्रसन्नता पूर्वक स्थिर रहे। प्रफुल्लित चित्त से एकान्त में श्वास के द्वारा निरन्तर नामजप करने से ऐसा हो सकता है।’’


‘‘भगवत्प्रेम एवं भक्ति-ज्ञान-वैराज्ञ-सम्बन्धी शास्त्रों को पढ़ाना चाहिए।’
‘‘एकान्त देश में ध्यान करते समय चाहे किसी भी बातका स्मरण क्यों न हो, उसको तुरन्त भुला देना चाहिये। इस संकल्प-त्याग से बड़ा लाभ होता है।’’

‘‘धनकी प्राप्ति के उद्देश्य से कार्य करने पर मन संसार में रम जाता है इसलिये सांसारिक कार्य बड़ी सावधानी के साथ केवल भगवत् की प्रीति के लिये ही करना चाहिये। इस प्रकार से भी अधिक कार्य न करे, क्योंकि कार्यकी अधिकता उद्देश्य में परिवर्तन हो जाता है।’’

‘‘सांसारिक पदार्थों और मनुष्यों से मिलना –जुलना कम रखना चाहिये।’’

‘‘संसार सम्बन्धी बातें बहुत ही कम करनी चाहिये।’’
‘‘बिना पूछे न तो किसीके अवगुण बताने चाहिए और न उनकी तरफ ध्यान ही देना चाहिये।’’
 
‘‘सबके साथ निष्काम और समभाव से प्रेम करना चाहिये।’’
 
‘‘नामजपका अभ्यास कभी नहीं छोड़ना चाहिये, नामजपमें बाधक विषयों का त्याग कर सदा-सर्वदा ऐसी ही चेष्टा करते रहना चाहिये कि जिससे हर्ष और प्रेमसहित नामजपका अभ्यास निरन्तर बना रहे।
 ऐसा हो जानेपर भगवान के दर्शन की भी कोई आवश्यकता नहीं।’’


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